ब्रह्मा जी हिन्दू धर्म में त्रिमूर्ति के तीसरे देवता हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु, और शिव शामिल हैं। त्रिमूर्ति में ब्रह्मा को सृष्टि का प्रभु माना जाता है, लेकिन उनकी उपासना बहुत ही कम होती है।
ब्रह्माजी के मंदिर न होने के कई पौराणिक कारण है लेकिन उनमें से कुछ ही प्रमुख कारण है आइए उन्हें जानते है।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंचे, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री ठीक समय पर नहीं पहुंचीं। पूजा का शुभ मुहूर्त बीतता जा रहा था |
सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच गए थे, लेकिन सावित्री का कुछ पता नहीं था। शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था।
तब कोई उपाय न देखकर ब्रह्मा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ पूरा किया।
कुछ समय बाद सावित्री यज्ञ स्थल पर पहुंचीं तो वहां ब्रह्मा जी के बगल में किसी और स्त्री को बैठे देख वो क्रोधित हो गईं।
गुस्से में उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी।
दूसरा कारण : प्रमुख देवता होने पर भी इनकी पूजा बहुत कम होती है। दूसरा कारण यह की ब्रह्मांड की थाह लेने के लिए जब भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा को भेजा तो ब्रह्मा ने वापस लौटकर शिव से असत्य वचन कहा था।
तीसरा कारण : जगत पिता ब्रह्माजी की काया कांतिमय और मनमोहक थी। उनके मनमोहक रूप को देखकर स्वर्ग अप्सरा मोहिनी नाम कामासक्त हो गई
समाधि में लीन ब्रह्माजी के समीप ही आसन लगाकर बैठ गई। जब ब्रह्माजी की तांद्रा टूटी तो उन्होंने मोहिनी से पूछा, देवी! आप स्वर्ग का त्याग कर मेरे समीप क्यों बैठी हैं?
ब्रह्मजी मोहिनी के कामभाव को दूर करने के लिए उसे नीतिपूर्ण ज्ञान देने लगे लेकिन मोहिनी ब्रह्माजी को अपनी ओर असक्त करने के लिए कामुक अदाओं से रिझाने लगी।
ब्रह्माजी उसके मोहपाश से बचने के लिए अपने इष्ट श्रीहरि को याद करने लगे।उसी समय सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। ब्रह्माजी बोले, 'यह अप्सरा नृत्य करते-करते थक गई थी विश्राम करने के लिए पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी है।'
ब्रह्माजी के अपने प्रति ऐसे वचन सुनकर मोहिनी को बहुत गुस्सा आ गया और उन्होंने बोला यदिं सच्चे हृदय से आपसे प्रेम करती हूं तो जगत में आपको पूजा नहीं जाएगा।